"सोने दे ऐ सुनहरे ख्वाब"
तुम्हारी बेवफाई का ख्याल आता है क्यों,
मन को दर्दे दिल ही भाता है क्यों ।
बड़ी मुशिकल से भूलती हैं भीगी रातें,
सावन फिर से लौट कर आता है क्यों ।
जिन रस्तों से गुजर चुके हम जमाने से,
वो रास्ता फिर से बुलाता है क्यों ।
तमाम उम्र गुजर जाती है रफ्ता-रफ्ता,
मन बीते वक्त के गीत गाता है क्यों ।
बहुत नींद आ रही 'अनिल' को थकने के बाद,
ऐ सुनहरे ख्वाब फिर से जगाता है क्यों ।
2 Comments:
भावपूर्ण सुन्दर रचना...विरह की पीड़ा का मार्मिक चित्रण किया है आपने...
वाह! बहुत खूब!
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