"तुम आये, दीप जले !"
तुम आये, दीप जले
वन-उपवन फूल खिले
नीरव मन, जड़ चेतन
नहीं बीते कोई क्षण
आहट तेरी सुन
ह्रदय के तार हिले
तुम आये, दीप जले
विहग हुए अनमन
करें न कोई स्वन
सुन तेरी पायल की धुन
सुरीली गुंजन निकले
तुम आये, दीप जले
चक्षु रहें थे बंद मेरे
निरंतर लें स्वप्न तेरे
ख्यालों-ख्यालों में ही
नयनों के तीर चले
तुम आये, दीप जले
क्रूर दिवाकर देह जलाये,
मनोवेग हैं मन बहकाये,
रुत कोई नहीं मन भाये,
तुम आओ, मौसम बदले
तुम आये, दीप जले
1 Comments:
Waah !!
Komal bhavbhari Bahut bahut bahut hi sundar geet...Aanand aa gaya padhkar..
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home