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कुछ तो मैं कह बैठा हूँ, अभी बहुत कुछ बाकी है,

कागज-कलम हैं मीत मेरे, शब्द ही दिल के साकी हैं !

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प्रेम अनुभूतियाँ

"मेरी अभिव्यक्तियों में सूक्ष्म बिंदु से अन्तरिक्ष की अनन्त गहराईयों तक का सार छुपा है इनमें एक बेबस का अनकहा, अनचाहा प्यार छुपा है " -डा0 अनिल चडडा All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.

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Monday, November 12, 2012

“ज़रा और पास आओ”




सूखी धरती को
ज़रा नम कर दो
कुछ देर नज़रें झुकाओ

आसमान को
तरबतर कर दो
कुछ देर पलकें उठाओ

मीठी ब्यार से
मेरा घर भर दो
जरा अपने गेसु लहराओ

सूने अँगना को
संगीतमय कर दो
ज़रा पायलिया खनकाओ

अपने प्रियतम का
जीना सफल कर दो
ज़रा और पास आओ

छुपी हाँ




नर्म साँसें तेरी
करें दिल पे मेरे
देखो चोट घनी
तेरी नजदीकियाँ
अब तो बेसाख्ता
जाँ की आफत बनीं


झुकी गर्दन तेरी
और गेसु खुले
देख नस-नस तनी
कैसे कर दूँ बयां
अपने  हालात को
दिल ज़हन में ठनी

मेरी गुस्ताखियों
और तेरी शोखियों में
थी खूब छनी
लाख नखरे करो
तेरी ना भी तो है
छुपी हाँ से सनी

“स्वाद प्यार का”




खिले तेरी जवानी
फूल की मानिंद
झुक जाओ हया से  
डाल की मानिंद

बिन भार के ही
हों अँखियाँ  भारी
मंद-मंद चलायें  
दिल पर आरी

बिन शब्द के होंठ
करें केवल स्पंदन
तुम्हे रोक रहा है
कौन सा बंधन

मेरी बात सुनो ना
पर दिल की सुन लो,
रूखी दुनिया में
कुछ स्वप्न भी बुन लो

मिला लय से लय
प्रणय कविता रच लो
तुम स्वाद प्यार का
थोड़ा सा चख लो