तेरे अधर !
अधरों पर
तुम्हारे प्यार के कुहासे छाए हैं
कोई मुस्कराए तो कैसे ?
जीवन का हर क्षण
तुम्हारा नाम गुनगुनाए है
कोई मर जाए तो कैसे ?
कलियों औ' भौरों की
गुपचुप से मन शर्माए है
कोई कुछ बतलाए तो कैसे ?
उनके कदमों की आहट पर
हमने कान लगाए हैं
कोई छिप जाए तो कैसे ?
रीता मन
हरदम उन्हे अपने पास बुलाए है
कोई गीत गाए तो कैसे ?
[ये रचना दिल्ली प्रेस की पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।]
2 Comments:
khusurat bhav
धर दिए हैं भाव
अधरों पर ही तो
धरा ही गोधरा बही।
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