तेरे आँगन में ही बरसें !
दो सलोने नयन तेरे मस्त कज़रारे,
बन गये मेरी अँधेरी रात के तारे !
रेशमी गेसु जो झूमें, साथ झूमें घन,
तेरे आँगन में ही बरसें, छोड़ घर सारे !
शाम भी तेरी हया सी लाल है कब से,
आ रही है रात कहती चाँद निकला रे !
बयार ने पलटा जो घूँघट, गाल छूने को,
यूँ लगा, चहुँ ओर तेरा नूर बरसा रे !
हौले से छम-छम बजे जब तेरी पायलिया,
छेड़े वो संगीत, जो हर दिल में बसता रे !
1 Comments:
बहुत सुंदर लिखा आपने ...
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