शायद वो इधर आई होगी !
लो फिर खिल गईं बागों में कलियाँ,
किसी बेख्याली में वो मुस्कराई होगी !
कोयल भी भूल गई अपने गीत गाना,
बातों-बातों में हौले से वो खिलखिलाई होगी !
क्यों ठहर गया वक्त का अचानक ही चलना?
अलसाई सी, उसने ली अँगड़ाई होगी !
भीनी सुगंध मौसम में आई कहाँ से?
अपनी भीगी जुल्फें उसने बिखराई होंगी !
बदला-बदला सा है मेरे घर का हर पहलू,
आज भूले से शायद वो इधर आई होगी !
[ये कविता दिल्ली प्रेस की पत्रिका में प्रकाशित हो चुकी है ।]
3 Comments:
बहुत बढ़िया.
बहुत खूब.
हलके फुल्के शब्दों में प्रेम और भावनाओं की फुहार.
मन एकदम बसन्ती हो गया
सुंदर कविता। सुंदरी का सुंदर चित्रण।
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