"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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उनकी फितरत ही जब बेवफा हो गई !
तुझपे मेरी गज़ल आशना हो गई,
अश्आर की तू तो खुदा हो गई !
शब हो या फिर शबनम की वेला रहे,
सारी कायनात तुझपे फिदा हो गई !
हम थे पीते रहे जिसको मय मान के,
एक दिन वो गमों की दवा हो गई !
जान गिरवी थी पहलू में जिसके मेरी,
मौका पाते ही वो तो हवा हो गई !
दरो-दीवार पर सर पटकने से क्या,
उनकी फितरत ही जब बेवफा हो गई !
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