"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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गज़ल !
चाँद उजला, जमीं भी उजली है,चाँदनी तुझको देख निकली है !सो गये हैं फलक पे तारे सभी,मिलती उनको तुझसे बिजली है !तू न हो तो नहीं ये गुंचे खिलें,देख तुझको बहार मचली है !बहुत भटके थे यूं वीराँ में,तुम मिले तो जिंदगी संभली है !जिंदगी तेरे बिन अधूरी थी,तेरे दर पे ही जान निकली है !
2 Comments:
जिंदगी तेरे बिन अधूरी थी,
तेरे दर पे ही जान निकली है !
चड्डा साहब .बहुत अच्छी कविता लिखी है..बधाई
waah !!! anil ji.......ati sundar
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