समझ मुझको उम्र-भर आया नहीं !
उठता रहा दिल से धुआँ,
उनको नज़र पर आया नहीं,
करता रहा दिल उनसे दुआ,
तरस उनको मेरे पर आया नहीं ।
मुलाकातें हुईं, कई बातें हुईं,
कुछ तुमने कहा, कुछ हमने कहा,
जो कहना था, सुनना था हमने मग़र,
उसका जिक्र तक आया नहीं ।
हम ढूँढें कहाँ, अपनी दर्दे-दवा,
कोई मिलता नहीं है अपना यहाँ,
हर रस्ता कहे, चल साथ मेरे,
इस दिल को सब्र पर आया नहीँ ।
कोई जुर्म नहीं, फिर भी मिलती सज़ा,
ये कैसी मिली है मुझको कज़ा,
हर पल क्यों मरूँ, दे कोई बता,
समझ मुझको उम्र-भर आया नहीं ।
कोई हो आसमाँ, या हो कोई ज़मीं,
जहाँ खुशियाँ मिलें, न हो कोई ग़मीं,
मतलब की दुनिया में मुमकिन नहीं,
मेरे दिल को नहीं पर आया यकीं ।
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