कोई रास्ता बताओ!
तुम्हारी यादों का आवरण
आँखों से हटे
तो मैं दुनिया देखुँ
यूँ तो
धुंधला सी गई है
तुम्हारी तस्वीर मेरी आँखों में
पर इसकी धुंधलाहट
मेरी दृष्टि को भी
कुछ-कुछ धुंधला सी गई है
इस धुंधलेपन के कारण
मैं देख नहीं पाता हूँ
अपने वर्तमान को
तो कल की तस्वीर
कैसे नज़र आयेगी मुझे
न आज अपना
न कल पर भरोसा
ये सोच-सोच कर
मेरी सोच
कुछ झुंझला सी गई है
अब या तो
तुम हकीकत में आ ही जाओ
या फिर
कोई ऐसा रास्ता बताओ
कि तुम्हारे आवरण को
तुम्हारी तस्वीर को
अपनी आँखों के सामने से
हटा पाऊँ
अपने मन के परदे से
मिटा पाऊँ
तभी देख पाऊँगा
जीवन के इन पथरीले रास्तों को
और तुम तक पहुँच पाऊँगा
इसी विश्वास को
जिंदगी पर
बार-बार झुठला सी गई है!
2 Comments:
तुम्हारी यादों का आवरण
आँखों से हटे
तो मैं दुनिया देखुँ
bahut sundar likha hai...
पल्लवी जी,
कविता पसन्द आने का एवँ प्रशंसा का बहुत-बहुत शुक्रिया !
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