अँखियाँ हैं भीगीं अँसुवन से !
अँखियाँ हैं भीगीं अंसुवन से,
जब से तुम आये हो मन में !
कर-कर गुहार मैं हार गई,
तेरी याद मुझे है मार गई,
अँखियों में बस के जाने कहाँ,
तुम खोये हो इस जीवन में !
राहें भी पूछें राह तेरी,
हर चाह में बसती चाह तेरी,
ग़र चाहत को ठुकराना था,
नहीं मिलना था मुझे यौवन में!
फूलों संग काँटे मिलते हैं,
नहीं फूल अकेले खिलते हैं,
ये जान के भी चुन बैठी मैं,
काँटों की दुनिया गुलशन में !
3 Comments:
बढ़िया है अनिल जी.
धन्यवाद समीर जी !
राहें भी पूछें राह तेरी
चाहों में बसती चाह तेरी
सुंदर !
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