मैं क्या करूँ !
तेरी याद सताती है,
मैं क्या करूँ!
दिन-रात जगाती है,
मैं क्या करूँ !
कोई तदबीर तुझे भुलाने की,
नहीं राह सुझाती है,
मैं क्या करूँ!
हर वक्त का रोना भी तो, अच्छा नहीं है,
बिन पाये खोना भी तो, अच्छा नहीं है,
पर कोई भी बात जिंदगी की,
नहीं हंसाती है,
मैं क्या करूँ!
बुरा क्यों मानते हो, ग़र प्यार जताते हैं,
दूर क्यों भागते हो, जब पास बुलाते हैं,
कोई भी शै तुझ बिन,
नहीं भाती है,
मैं क्या करूँ !
1 Comments:
सही है.
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