गज़ल!
ताउम्र समेटता रहा दर्द मैं यारब,
अब दर्द ही मेरा खुदा हुआ है यारब !
हर बात नहीं सबसे कहता है हर कोई,
मेरे दिल की बात समझ कभी तो यारब !
मैं ख्वाब देखता रहा तुझसे मिलने के,
कोई कर तू भी तदबीर कभी तो यारब !
सुनसान पड़े हैं रस्ते, सूनी हैं गलियाँ,
कभी हमको भी खुशियाँ अता कर यारब !
कोई मकसद मिलता नहीं हमें है जीने का,
यूँ तो जीने को जीते सभी हैं यारब !
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