तुमसे हमारा रिश्ता ही क्या था?
तुमसे हमारा रिश्ता ही क्या था,
जो मन की बात कह बैठे,
अपनी बात कह कर,
हम बात भी खो बैठे !
दिल लगाने के लिये दिल भी तो होना चाहिये,
और उस दिल में कुछ जगह भी तो चाहिये,
जो जानते न हों दिल की बातें,
क्यों हम उनको दिल दे बैठे !
पत्थर तो होता नहीं शीशे की मानिंद,
कि अपना चेहरा उसमें दिख जाये,
जिन्हे आईना भी कुछ न दिखा पाये,
वो खुद से भी शर्म नहीं करते !
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home