"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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रोज खेलुँ होली!
हया के रंग,प्रेम की रंगोली,बात की बात में,कोई किसी की होली!पी का मनुहार,बना गलहार,चुपके-चुपके खेलुँ,उनसे आँख मिचौली !सपनों की बारात,भावना की वेदी,तारों की छाँव में,उठी मन की डोली!अंतस तक,उनके भिगो गये नैना,रंग में उनके रंग के,रोज खेलुँ होली !
5 Comments:
bahut sundar,holi mubarak
बहुत बढि्या रचना है।
आप को होली की बहुत-बहुत बधाई।
धन्यवाद बालीजी एवं महकजी । आपको भी होली बहुत बहुत मुबारक ।
आपको होली बहुत-बहुत मुबारक.
आपको भी बहुत-बहुत मुबारक, उड़नजी । आप बहुत दिनों बाद मेरे ब्लाग पर आये ।
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