"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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गज़ल!
सिर झटक के ज़ुल्फें बिखरने दीजिये,धरा को आसमान से मिलने दीजिये ।दिल यूँ भी काबू में रहता था कहाँ,इसे ज़रा और भटकने दीजिये ।हर सवाल का ज़वाब तुम्ही पे खत्म हो,हमें जी भर सवाल करने दीजिये ।ख्वाहिशों की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है,इन्हे कहीं पर तो रुकने दीजिये ।बहुत जी लिये हम यूँ ही तन्हा-तन्हा,अपने दर पर हमें मरने दीजिये ।
6 Comments:
ख्वाहिशों की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है,
इन्हे कहीं पर तो रुकने दीजिये ati sundar
महक जी,
गज़ल पसन्द आने का अति शुक्रिया !
अनिल जी,बहुत अच्छी गजल है।
दिल यूँ भी काबू में रहता था कहाँ,
इसे ज़रा और भटकने दीजिये ।
तारीफ का बहुत बहुत शुक्रिया बाली जी !
हमेशा की तरह उम्दा गजल.
धन्यवाद, उड़न जी !
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