गज़ल!
क्या ज़रूरत है बेवफाई का सबब जानने की,
जो प्यार न करें, उनसे प्यार माँगने की ।
दर्दे-दिल उनका दिया दिल में ही रहने दो,
उनकी मंशा नहीं है मेरा दर्द बाँटने की ।
दो लफ्ज़ भी ग़र कह देते अपनी ज़ुबाँ से वो,
वजह मिल जाती हमें हयात काटने की ।
दिल तो हमने ही दिया है बिन माँगे उनको,
फिर तकलीफ क्यों हो हमें दिल हारने की ।
बेशक न रखते वो मेरा दिल अपने पास,
पर तदबीर तो न करते वो हमें मारने की ।
3 Comments:
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल...
bahut khub,sahi gum-e-dil.dil mein hi achha,kya jarurat zamane ko ruswai dikhane ki.
गज़ल पसंद आने के लिये बहुत-बहुत शुक्रिया विनय एवँ महक जी ।
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