"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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कयों तुम?
क्यों तुममुझेजीने नहीं देतीक्यों तुममुझेमरने नहीं देतीआँखबंद करूँ तोसपने तेरे ही तेरे हैंखुली आँखों कोतेरी यादें घेरे हैंक्यों तुममुझेचैन सेरहने नहीं देतीहर बात मेंतेरी बातें हैंहर काम सेतेरे नाते हैंक्यों तुममुझेकुछ करने नहीं देतीक्यों तुममुझेजीने नहीं देतीक्यों तुममुझेमरने नहीं देती
2 Comments:
अनिल जी,
बातें सब अनुराग की हैं
बस अपने अपने भाग की हैं...
कोई यादों के सहारी जीवन गुजार देता है और किसी को जीवन भर किसी की याद नहीं आती.
सुन्दर भाव भरी रचना के लिये बधाई
bahut sundar bhavpurn
http://mehhekk.wordpress.com/
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