गज़ल!
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क्या ज़रूरत है उनसे दिल लगाने की,
जिन्हे परवाह न हो दिल टूट जाने की ।
करता रहा गुज़ारिश जिनसे आने की,
टालते रहे वो आड़ ले बस बहाने की ।
दिल फिर भी सोचता है उन्ही के लिये,
तदबीर नहीं कोई दिल को मनाने की ।
राह उनकी भी अपनी, राह मेरी भी अपनी,
तकदीर फिर भी वज़ह बनाये मिलाने की ।
जिंदगी गुज़र जाये हँसी-खुशी में बस,
हमने भी सोच ली है उन्हे ना बुलाने की ।
1 Comments:
wah kya baat hai bahut,humne bhi soch li hai unhe na bulane ki.umada.
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