गज़ल!
हमसे कोई बात करो, कभी तो मुलाकात करो,
ख्वाबों में आओ मेरे, ऐसी तो कोई रात करो ।
टूटे-टूटे से हैं ज़जबात, समाँ बिखरा हुआ,
तुमसे जुड़ जाये ये हयात, ऐसे हालात करो ।
हमने कुछ ऐसा नहीं माँगा, जो तू दे न सके,
संगेदिल बनके न हमको यूँ बरबाद करो ।
सबब कोई तो बनना था मेरी मौत का रब,
तेरे गम में ही मरूँ, ऐसे इंतज़ामात करो ।
हम तो कुछ पूछे बिना हो बैठे तेरे सनम,
अपनी बारी में तो न हमसे सवालात करो ।
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