ग़र तुम मेरे होते!
ग़र तुम मेरे होते, तो हम न यूँ फिर रोते,
दिन कटते मस्ती में, रात को चैन से सोते ।
तारों की तुम बात करो न, तारों का साथी चंदा,
अपना कोई साथी होता तो तारे तो न गिनते ।
कहीं फूल खिलें गुलशन में, कहीं राह मिले कांटों की,
तुम जो हमको मिलते ,छाले पैरों में न होते ।
जब भोर की किरणें आईं, खोली आँखें अलसाई,
जो ख्वाबों में तुम आते, फिर से हम सो जाते ।
गर्दिश में जब हों तारे, तो छोड़ के भागे सारे,
जीवन आसाँ हो जाता, ग़र तुम लौट के आते ।
1 Comments:
bahut sundar badhai
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