गज़ल!
इतने भी संगदिल न बनो कि पत्थर भी शरमाने लगें,
और जहाँ वाले दिल लगाने से कतराने लगें ।
ये माना कि हंसी हो तो गुमां भी होगा ही तुम्हे,
पर ये तो अच्छा नहीं कि कोई सभी को ठुकराने लगे ।
और भी तो हंसीं होंगें ही दुनिया में तुम जैसे कई,
यूँ तो नहीं कि सभी पर दिल किसी का आने लगे ।
तुम भी तो रोये ही होगे कभी किसी की ख़ातिर,
फिर ऐसा क्यों है कि हमको तुम रूलाने लगे ।
ज़िंदगी तो गुजर ही जायेगी रफ्ता-रफ्ता करके मेरी,
वो अलग बात है, हर मोड़ पे तुम नजर आने लगे ।
4 Comments:
बहुत बढिया गजल है
तुम भी तो रोये ही होगे कभी किसी की ख़ातिर,
फिर ऐसा क्यों है कि हमको तुम रूलाने लगे ।
बहोत खूब ।
संग दिल सनम का भी दिन पिघल जायेगा
आप क्यूं अभी से घबराने लगे
सही है सर!
बहुत अच्छी ग़ज़ल है. बधाई. दो पंक्तिया दे रहा हूँ
इतनी हसीं तो ना थी जितनी नज़र आती हो
मेरे ख्याल से ये जादू उसका है जिसे तुम चाहती हो.
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