आरम्भ!
जब सावन की रिमझिम
बुला रही है तुम्हे
तो क्यों
रेगिस्तान की तप्ती रेत पर
चलना चाहती हो
जीवन की म्रगत्रषणा
धरती-आसमान के
मिलन की तरह है
जो आपस में
मिलते हुए भी
कभी मिल पाते नहीं हैं
इसलिये जो अपना है
उसे किसी अनदेखे की चाह में
मत ठुकराओ
क्या पता ये तुम्हे
वो न दे
जो तुम्हे कभी मिल जाये
या तुम्हे वो मिल जाये
जो फिर कभी न मिले
यही तो प्रारब्ध है
यही आनन्द है
जहाँ से चलना आ जाये
समझो वहीं से
आरम्भ है !
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