गज़ल!
हमने तो दिल किताब की तरह खोल के रख दिया,
अब ये उन पर मुनहसर है कि वो उसे पढ़ें न पढ़ें ।
ये दिल तो गाता है अब उन्ही के प्यार के गीत,
अब ये उन पर मुनहसर है कि वो सुनें न सुनें ।
कुछ तो आता होगा उनके दिल में भी हमारे लिये,
अब ये उन पर मुनहसर है कि वो कहें न कहें ।
दिल हमने रखा है खाली सजा के उनके लिये,
अब ये उन पर मुनहसर है कि वो रहें न रहें ।
हमें तो हर लम्हा हर पल अब दिखते हैं वो,
अब ये उन पर मुनहसर है भरोसा करें न करें।
1 Comments:
बढिया गजल है।बधाई।
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home