गज़ल!
alt="चिट्ठाजगत अधिक्रत कड़ी"title="चिट्ठाजगत अधिक्रत कड़ी";>
इन झील सी गहरी आँखों में उतर तो जाऊँ,
डरता हूँ कहीं किनारा मिले न मिले ।
दो शब्द प्यार के तो कह देती हमें,
जाने फिर दोबारा हम मिलें न मिलें ।
बढ़ के थाम लेते ये बढ़े हुए हाथ,
फिर कभी कोई सहारा मिले न मिले ।
जिंदगी को प्रीत भरी निगाह से देख लो,
फिर कभी ये नज़ारा मिले न मिले ।
ख़ुदा की नेमत मान कबूल कर सब,
दोबारा उसका इशारा मिले न मिले ।
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