गज़ल!
जितना दर्द दिया तूने है, उतने दर्द भरे मेरे गीत,
ये कैसा रिश्ता तुमसे बना, बने हो दर्द के मेरे मीत ।
ज़ख्म हो छोटा या हो बड़ा, दर्द तो हमको देगा ही,
फिर भी दुनिया में क्यों है, ज़ख्म कुरेदने की रीत ।
ना जाने आता मज़ा क्या, दिल से किसी के खेल कर,
और मज़े की बात है इसको नाम भी देते हैं प्रीत ।
ये तो बात है किस्मत की, कोई हंसता है कोई रोता है,
कहीं बजती शहनाईयाँ, कहीं बजते हैं मातम के गीत ।
छोटी सी मुलाकात में तुम भी थोड़ा दर्द तो ले ही गये,
इस दर्द के रिश्ते में बोलो कैसी हार और कैसी जीत ।
2 Comments:
आपकी रचना बहुत अच्छी लगी ।
घुघूती बासूती
बहुत सुंदर. अच्छी लगी आपकी कविता. मन के भाओं का सुंदर शब्द चित्रण.
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