"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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गज़ल!
अब तो कोई ग़म तकलीफ देता नहीं,आदत जो पड़ गई है तेरे ग़मों की ।बात और कोई सुनाई देती नहीं है,आदत सी पड़ गई है तेरे लफ्ज़ों की ।खूँ के कतरों से दास्ताने-दग़ा लिखना,बन गई है आदत अब मेरी रगों की ।तुम भी, हम भी और दुनिया भी वही,बस पहचान ही बदल गई नज़रों की ।हर बात में मतलब अपना ही देखना,परिभाषा ही बदल दी गई अर्थों की ।
2 Comments:
बढ़िया.
बहुत बढिया!
तुम भी, हम भी और दुनिया भी वही,
बस पहचान ही बदल गई नज़रों की ।
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