मनोबल!
नर्म बर्फ की
चादर ने
ढाँपने चाहे
मेरी
यादों के साये
सर्द हवाएँ भी
मेरे मन-मस्तिष्क को
सुन्न कर देने की
कोशिश में
साथ देती रही उसका!
ये यादें पर
उभर आती हैं
फिर से
बर्फ से ढके
पड़ों की
पत्तियों सी!
मैं जानता हूँ
ये बर्फ की चादर
ये सर्द हवाएँ
अक्षम हैं
मेरे मन का
मनोबल ही
सक्षम है
इसलिये इनसे
कोई हार क्यों माने!
ये भी तो जानें
हम हैं
उनके ही दीवाने!!
(अमेरिकावास के दौरान रचित)
3 Comments:
सुंदर शब्द और सक्षम मनोबल वाली रचना... वाह. बधाई
नीरज
सुंदर शब्द और सक्षम मनोबल वाली रचना... वाह. बधाई
नीरज
अच्छी रचना है।बधाई।
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