गज़ल!
हर बार सोचता हूँ, नहीं दिल लगाना है,
ग़म पालने का लेकिन, ये तो बहाना है ।
वो हँसते हैं,कहते हैं, दिल फेंकते हो क्यों,
वो जानते कहाँ हैं, उनको आजमाना है ।
सोई हुई तकदीर है, गर्दिश में हैं तारे,
इक चाँद मेरा हो तो, अपना ये जमाना है ।
वैसे तो नहीं आती, दिल में कोई भी सोच,
लिखते हैं इसी ख़ातिर, उनको जो सुनाना है ।
वो सोचते हैं उनको बताते हैं दिल का हाल,
अपनी गज़लों में तो, सब का ही फसाना है ।
3 Comments:
बहुत खूब.
सोई हुई तकदीर है, गर्दिश में हैं तारे,
इक चाँद मेरा हो तो, अपना ये जमाना है ।
क्या बात कही है. अच्छी है.
bahut baDhiyaa!
वो सोचते हैं उनको बताते हैं दिल का हाल,
अपनी गज़लों में तो, सब का ही फसाना है ।
its really good. can be composed, hummed and sung. seedhe-sade shabdon me kahi hui bat aasani se samajh aati hai.
waiting for more.
but sir, why u have not posted even a single creation in this year so far?
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