गज़ल!
कोई कह देता है मन की, कोई चुप रहके सहे,
इक-दूज़े से सुलटना तो रिश्तों का व्यापार है ।
कोई किसी की खुशियों में मर जाता है खुशी से,
और कोई होता है खुश किसी को यूँ ही मार के ।
कट रही है जिंदगी अब भी उनके इन्तज़ार में,
पा लिये हैं क्यों ये ग़म हमने उनके प्यार में ।
सोचता था मैं कभी उनसे नहीं टकराऊँगा,
फिर हो गई मुलाकात लेकिन आज बीच बाजार में ।
ढ़ाई अक्षर दर्द के और ढ़ाई अक्षर प्रेम के,
इसलिये दोनों में रिश्ता बन गया संसार में ।
1 Comments:
बहुत बढिया गजल है।बधाई।
कोई किसी की खुशियों में मर जाता है खुशी से,
और कोई होता है खुश किसी को यूँ ही मार के ।
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