गज़ल!
कभी हमें भी याद कर लो तो बुरा क्या है,
सुकुँ हमें भी मिले तो बुरा क्या है ।
हमारे ख्यालों में तो आठों पहर रहते ही हो,
हमें भी ख्यालों में लाओ तो बुरा क्या है ।
वैसे तो रास्ते तुम्हारे भी ज़ुदा अपने भी ज़ुदा,
कभी कदम से कदम मिलाओ तो बुरा क्या है ।
गुलशन में फूल खिलाने से कांटे तो चुभें गें ही,
फिर एक-आध ज़ख्म खाने में बुरा क्या है ।
हकीकत लाख छुपाने से क्या छुपा सकोगी,
फिर हमको सच बताने में बताओ बुरा क्या है ।
1 Comments:
बहुत अच्छा लिखा है ।
घुघूती बासूती
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