"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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तुम्ही बताओ!
मानसपटल परअंकिततस्वीर तेरीजब तबधुंधला तो जाती हैपरकोई शैइसेमिटा नहीं पाती हैरोज़-रोज़हर पलहर क्षणइक परत सीजमने लगती हैइस पर जबनये वाक्यात कीतो तुरंतउस परत कोझटक जाती हैयाद तेरीऔरफिर सेउभर आती हैतस्वीर तेरीतो फिरतुम्ही बताओकैसे मिट पायेगीमेरे ज़हन सेतस्वीर तेरी!
2 Comments:
bahut badiya,tasveer dhundhala sakti hai mit nahi sakti.
kya kanhu....bhut umda likha hai....
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