गज़ल!
प्यार है या नफरत, कोई तो रिश्ता है,
तेरे ख्यालों से कोई तो नाता है ।
कोई बात ही न उठती, ग़र बात कुछ न होती,
मेरे जिक्र से कहीं तो वो भी वाबस्ता हैं ।
फूलों की वादियों में, काँटें भी तो मिलेंगें,
बिन काँटों के जहाँ में कोई गुलिस्ताँ है ।
वो दिल कहाँ से लाऊँ, जो हद में बँध के बोले,
हदें बाँधने से निभता कहीं कोई रिश्ता है ।
इन्सान हूँ तभी तो इक भूल हो गई है,
जो भूल न करे, वो तो फरिश्ता है ।
2 Comments:
ek dam sahi,insaan tho bhul karenge,bhul nahi karte wo farishta huye.
http://mehhekk.wordpress.com/
अनिल जी
इन्सान हूँ तभी तो इक भूल हो गई है,
जो भूल न करे, वो तो फरिश्ता है ।
बहुत सच्ची बात लिखी है आप ने.वाह...
नीरज
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