गज़ल!
मेरी सोच तुम पर ही अटक गई,
जिंदगी इसी मोड़ पर भटक गई ।
आँखें जब भी बंद करता हूं कभी,
तेरी तस्वीर आँखों में मटक गई ।
यूँ तो खुश रहता है मन बेवजह,
तेरी कमी ही जीवन में खटक गई ।
आँखें जब-तब खोजने लगती हैं तुम्हे,
तुम्हारी याद ज़हन में खनक गई ।
कभी मिल जाओगे अचानक ही राहों में,
इसी आस में ये अंखियाँ चमक गईं ।
Labels: gazal, literature, poems, prem, shringar
2 Comments:
यूँ तो खुश रहता है मन बेवजह,
तेरी कमी ही जीवन में खटक गई ।
सच्चाई भरा नज़रिया...
आपको गज़ल अच्छी लगी, उसके बहुत बहुत शुक्रिया विनय जी ।
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