"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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गज़ल!
दफन हो जायेंगी यादें ज़हन की कब्र में, इन यादों को कफन तो पहना दो ज़रा । कोशिश तो करेंगें यादें जीएँ न दोबारा, तुम भी हमें कोई तदबीर सुझा दो ज़रा । दिल बार-बार सोचता है तुम्हारे लिये क्यों, तुम्ही इस बात की वज़ह समझा दो ज़रा । वीरानीयों ने बार-बार सदा दी बहारों के लिये, कब तलक आओगे तुम ये बता दो ज़रा ।
1 Comments:
बेहतरीन भाव...जारी रहें.
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