गज़ल!
क्यों खेल गये तुम भी मुझसे प्यार का खेल,
क्या ज़रूरत थी हार का एहसास कराने की ।
यूँ ही यकीं करना किसी पर बहुत मुश्किल था,
क्या ज़रूरत थी रहा सहा विश्वास उठाने की ।
जब छोड़ना था हाथ तो थामना ही नहीं था,
क्या ज़रूरत थी किसी को बदहवास बनाने की ।
यूँ भी तो जिंदा हैं हम मुर्दों की मानिंद,
क्या ज़रूरत थी मुझे इक लाश बनाने की ।
ज़मीर तुम्हार कभी तो कचोटता होगा तुम्हे भी,
क्या ज़रूरत है बेवफाई का एहसास कराने की ।
1 Comments:
fantastic lines,zammer tumhara kabhi kachot ta hoga tumhe hi,bahut khub sher.
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