गज़ल!
ये दिल शीशा नहीं जो टूट के जुड़ न सके,
प्यार की मलहम लगवा कर तो देखो ज़रा ।
आईना तो कह जायेगा सच्ची बात सनम,
दिल के आईने में झाँक के तो देखो ज़रा ।
तुम खुद से ही बात कर के रो लेते हो क्यों,
हमसे दिल की बात कह के तो देखो ज़रा ।
हम भी ज़ुदा तो नहीं हैं दुनिया से लेकिन,
कभी हमको आज़मा कर के तो देखो ज़रा ।
कब तक चुपचाप बैठे रहोगे ग़मगीन हो कर यूँ,
मेरी नज़रों से दुनिया पहचान के तो देखो ज़रा
2 Comments:
तुम खुद से ही बात कर के रो लेते हो क्यों,
हमसे दिल की बात कह के तो देखो ज़रा ।
वाह !
गज़ल पसन्द आने का बहुत बहुत शुक्रिया ओझा जी!
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