इतना तो हक दिया होता !
तुम्हे जब चाहूँ याद कर लूँ,
इतना हक तो दिया होता ।
ख्यालों में तुमसे मुलाकात कर लूँ,
इतना हक तो दिया होता ।
वैसे तो कोई रिश्ता न था अपना,
तुमसे कोई वास्ता न था अपना,
कोई रिश्ता न सही, कोई वास्ता न सही,
बात करने का हक तो दिया होता ।
सवालों के धेर में पड़ गया दिल,
तेरे फेर में पड़ गया दिल,
कोई रास्ता न कदमों को सूझे अब,
अपने घर का पता तो दिया होता ।
चल पड़े हम यूँ डगमगाते से,
तेरे तीरे नज़र से तड़पड़ाते से,
कोई खाने को बैठा है खुशी से,
नज़रों का इक वार तो किया होता ।
6 Comments:
कोई रिश्ता न सही, कोई वास्ता न सही,
बात करने का हक तो दिया होता ।
सर जी
बात तो तब करते जब तुमने
अपना फोन नम्बर दिया होता
23742176
अपनें मनोभावों को रचना में अच्छापिरोया है।सुन्दर!
धन्यवाद बालीजी
bahut hi sundar,apratim rachana
बहुत-बहुत धन्यवाद महक जी। आपको मेरी रचनायें पसन्द आती हैं, इसलिये प्रतिक्रिया का इन्तजार रहता है ।
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