सच कहने से वो बिगड़ते हैं !
हम तो सीधी सी बात कहते हैं,
वो तो कुछ और ही समझते हैं ।
जिनको रिश्ता निभाना आता नहीं,
वो बिना बात के अकड़ते हैं ।
शिकवा-गिला कोई करे कैसे,
सच कहने से वो बिगड़ते हैं ।
बात बनती रहे, बिगड़ती रहे,
यूँ ही तो साथ-साथ चलते हैं ।
दर्द का माप नहीं होता कोई,
अपना पैमाना सभी रखते हैं ।
नहीं मुश्किल है ज़ख्म देना कभी,
बड़ी मुश्किल से पर ये भरते हैं ।
3 Comments:
जिनको रिश्ता निभाना आता नहीं,
वो बिना बात के अकड़ते हैं ।
नहीं मुश्किल है ज़ख्म देना कभी,
बड़ी मुश्किल से पर ये भरते हैं ।
बेहद गहरे कथ्य, बधाई स्वीकारें..
***राजीव रंजन प्रसाद
बहत ही सुदर, बधाई ।
राजीवजी एवं आशाजी,
गज़ल पसन्द आने का बहुत-बहुत शुक्रिया ।
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