"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
All the content of this blog is Copyright of Dr.Anil Chadah and any copying, reproduction,publishing etc. without
the specific permission of Dr.Anil Chadah would be deemed to be violation of Copyright Act.
गज़ल!
रात तन्हा थी, मैं भी तन्हा था, फिर भी दोनों को रहना तन्हा था । तोड़ कर ले गये गुलिस्ताँ से, नाम जिस गुल पे मेरा अपना था । दास्ताँ क्या ये मेरे लब कहते, जो भी सुनता था, यूँ ही हँसता था । कोई उम्मीद न थी किनारों से, घर मेरा बीच धार बसता था । कीमती थे सभी तुम्हारे लिये, बस मेरा दिल ही सबसे सस्ता था ।
1 Comments:
तोड़ कर ले गये गुलिस्ताँ से,
नाम जिस गुल पे मेरा अपना था
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home