गज़ल!
ताउम्र समेटता रहा दर्द मैं यारब,
अब दर्द ही मेरा खुदा हुआ है यारब ।
हर बात नहीं सबसे कहता है हर कोई,
मेरे दिल की बात समझ कभी तो यारब ।
मैं ख्वाब देखता रहा तुझसे मिलने के,
कोई कर तू भी तदबीर कभी तो यारब ।
सुनसान पड़े हैं रास्ते, सूनी हैं गलियाँ,
कभी हमको भी खुशियाँ अता कर यारब ।
कोई मकसद मिलता नहीं हमें है जीने का,
यूँ तो जीने को जीते सभी हैं यारब ।
1 Comments:
मैं ख्वाब देखता रहा तुझसे मिलने के,
कोई कर तू भी तदबीर कभी तो यारब ।
bahut hi badhiya kaha.
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