तुम पर कविता कैसे मैं करूँ!
तुमको इतना मैंने चाहा है,
मेरे दिल ने इतना सराहा है,
जो रोम-रोम में बसता हो,
उस पर कविता कैसे मैं करूँ !
रूप नया हर रोज़ मिले,
दपर्ण भी है हैरान बड़ा,
क्या सोच के तुमको,मेरी प्रिय,
ऊपर वाले ने तुझको घड़ा,
तुम खुद में ही इक कविता हो,
तुम पर कविता कैसे मैं करूँ !
कुदरत ने तुझमें रंग भरे,
चंदा भी तुझको नमन करे,
स्वपनिल जीवन की खुशियाँ भी,
नयनों में तेरे शयन करे,
तुम पूर्णता की सरिता हो,
तुम पर कविता कैसे मैं करूँ !
जब आ जाओ, जीवन जागे,
हर पल तुमसे साँसें माँगे,
गर्मी की धूप हो मनभावन,
बिन सावन के बरसे सावन,
जिससे बस नूर टपकता हो,
उस पर कविता कैसे मैं करूँ !
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