"मेरी अभिव्यक्तियों में
सूक्ष्म बिंदु से
अन्तरिक्ष की
अनन्त गहराईयों तक का
सार छुपा है
इनमें
एक बेबस का
अनकहा, अनचाहा
प्यार छुपा है "
-डा0 अनिल चडडा
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नया गीत मैं रचता जाऊँ!
तुझे याद मैं करता जाऊँ,नया गीत मैं रचता जाऊँ !तेरी ज़ुल्फें घनी सुनहरी,अँखियाँ काजल से गहरी,तेरे होठों में वो रस है,ख्वाबों में चखता जाऊँ !तेरी चाल बड़ी मदमाती,हिरनी के मन को भाती,बलखाती चोटी में मैं,बेबस ही उलझता जाऊँ !कोमल सी बाहों में जब,महरून चूड़ियाँ खनकें,मधुरिम उनकी धुन मेंमदहोश हो गाता जाऊँ !
5 Comments:
वाह जी वाह जी वाह !!
कविता की तारीफ का बहुत-बहुत शुक्रिया, डा0 प्रवीन जी !
वाह!! शुभकामनाऐं.
वाह अनिल जी, सुन्द गीत...
***राजीव रंजन प्रसाद
अच्छी कविता प्रेम से ओतप्रोत ।
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