क्यों यूँ तड़पाती हो !
चुपके से आती हो,
इस दिल में समाती हो,
मैं समझ नहीं पाता,
क्यों यूँ तड़पाती हो ।
जब आँख लगे मेरी,
तो पास तुम्हे पाऊँ,
और दिन के उजाले में,
तुम्हे देख नहीं पाऊँ,
हर बार यही किस्सा,
तुम क्यों दोहराती हो ।
कोई आहट जब होती,
आभास तेरा होता,
तुम आती ही होगी,
विश्वास मेरा होता,
पट खोल के देखुँ तो,
तुम सब झुठलाती हो ।
ग़र प्यार मेरा तुमसे,
इकतरफा ही होता,
तो तेरे ख्यालों में,
मैं यूँ ही क्यों खोता,
तुम अपने मन की बात,
नहीं क्यों बतलाती हो ।
जो लहरें ख्यालों की,
आती हैं तेरे घर से,
यूँ ही तो नहीं देती,
दस्तक मेरे दर पे,
मैं यूँ ही पागल हूँ,
क्या ये समझाती हो ।
4 Comments:
deewanagi ko bayan karti khubsurat si nazm bahut badhai.
nazam pasand aane kaa bahut bahut shukriya mehekji
जब आँख लगे मेरी,
तो पास तुम्हे पाऊँ,
और दिन के उजाले में,
तुम्हे देख नहीं पाऊँ,
हर बार यही किस्सा,
तुम क्यों दोहराती हो ।
बहुत ही खूब्सुरत नज़म
बहुत ही बढिया साहित्यक तरीके से दिन के उजाले मे जिसे बुलाने का प्र्यास किया है आप कामयाब हों मेर दुआ है
मै तो आप्को शुरू से ही दिवाना रहा हूँ और बिना शिद्द्त के मै कोई काम नही करता चाहे वो दोस्ती हो या प्यार या कमेन्टस जैसा काम ।तुम्हारे मुकाबले मे तो मै सारी दुनिया को छोड़ सकता हू ये किसी एक या दो ब्लागर की तो बात ही क्या है हजूर्। आप्के अलावा ्किस्सी ब्लाग पर अब कामेन्टस ही नही देगे हजूर
कृष्ण लाल जी,
आपकी प्रशंसा और दीवानेपन की लगन देख कर मैं बहुत ही ज्यादा अभिभूत हुआ । कोशिश करूँगा आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूँ ।बहुत-बहुत शुक्रिया !
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