शेष सब स्वयँमय होगा !
इशारों को
शब्दबद्ध कर
कविता में
गूंथ रहा हूँ
इनकी माला
नयनों के
कोरों से उठा
अपने
ह्रदय रूपी
मंदिर को
पहनाओगी
तो जीवन
सुगन्धमय होगा !
अपनी
भावनाओं की
सरिता को
कलमबद्ध कर
तुम तक
पहुँचा रहा हूँ
इनमें
सहज ही
उतरोगी तो
जीवन के
भँवर में
तैरना
आनन्दमय होगा!
तुम्हारा-मेरा
अंकुरित होता प्यार
जब
हवाओं की
लहरों पर
अठखेलियाँ करता
स्वरबद्ध होगा
तो जीवन
संगीतमय होगा !
आओ
एक-दूसरे से
बंध जायें
इक-दूसरे में
खो जायें
सभी
गिले-शिकवे छोड़
सभी
बंधन तोड़
हम
एक हो जायें
शेष सब तो
स्वयँमय होगा !
4 Comments:
bahut hi sundar
कविता पसन्द आने का बहुत-बहुत शुक्रिया, महकजी !
बढ़िया है.
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आप हिन्दी में लिखती हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं, इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
यह एक अभियान है. इस संदेश को अधिकाधिक प्रसार देकर आप भी इस अभियान का हिस्सा बनें.
शुभकामनाऐं.
समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
राजीव जी,
कविता पसन्द आने का बहुत-बहुत शुक्रिया !
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