एक ही ग़ल्ती हर बार क्यों करें !
जो हमसे प्यार न करें, उन्हे हम प्यार क्यों करें,
ग़मों का दिल में अपने यूँ ही हम अंबार क्यों करें ।
नहीं हैं मुश्किलें अपनी ज़हाँ में पहले से ही कम,
तो फिर ख़ारों से राहों को हम सरोबार क्यों करें ।
जिन्हे फुर्सत नहीं नज़रें उठा के देख लें हमको,
तो बेकार नज़रें उनसे हम दो-चार क्यों करें ।
किसी को न ज़रूरत हो हमारी अपने जीवन में,
बिना जाने ही उस पर हम कहो एतबार क्यों करें ।
वक्त तो कट ही जायेगा, हमारा भी, तुम्हारा भी,
तो फिर हम एक ही ग़ल्ती कहो हर बार क्यों करें ।
4 Comments:
वक्त तो कट ही जायेगा, हमारा भी, तुम्हारा भी,
तो फिर हम एक ही ग़ल्ती कहो हर बार क्यों करें ।
बहुत खूब लिखा है
वक्त तो कट ही जायेगा, हमारा भी, तुम्हारा भी,
bhut hi gahari hai ye paktiya. likhate rhe.
बढ़िया है अनिल जी.
रंजु, रश्मि एवं समीर जी,
प्रोत्साहन का बहुत-बहुत शुक्रिया !
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