जाने क्यों तुमको खटक गया !
मन जाने क्यों अटक गया,
त्रिशंकु में लटक गया,
हर राह वही, पहचान वही,
दिशा ये कैसे भटक गया !
नित नए स्वपन मैं बुनती थी,
काँटों से फूल मैं चुनती थी,
जिस सपने में तुम आते थे,
जाने वो कैसे चटक गया !
आहट सुन कर मैं ठिठकी थी,
अँखियाँ राहें ही तकती थीं,
तेरे आने के पल में क्यों,
अँखियों में रोड़ा रड़क गया !
मैं बाती बनी दीए की थी,
खुद जल जग तेरा रौशन किया,
बुझती लौ को कुछ तेल मिले,
जाने क्यों तुमको खटक गया !
3 Comments:
bahut hi sundar
achchi abhivyakti
बहुत सुन्दर चड्ढा जी।
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