न हो तुम जहाँ, कहाँ ऐसा जहाँ हो !
तेरी बेरुखी से वाबस्ता तो हैं हम,
पर इस दिल की हालत कैसे बयाँ हो ।
जो चोट तुमने मारी है दिल पर,
उस चोट का तुमको कैसे गुमाँ हो ।
कहते तो हो दोस्ती है हमारी,
क्या दोस्ती का यूँ ही इम्तहाँ हो ।
बेशक न समझो मेरे दिल की हालत,
इज़हार की पर यही तो जुबाँ हो ।
कोशिश तो है तुझे भूल जायें हम,
न हो तुम जहाँ, कहाँ ऐसा जहाँ हो ।
2 Comments:
कोशिश तो है तुझे भूल जायें हम,
न हो तुम जहाँ, कहाँ ऐसा जहाँ हो
चडड़ा साहब क्या बात है!
अच्छी गज़ल।
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