दिल तुम बिन डूबा जाता है !
गलहार बनी है मनोव्यथा,
उर पाती नहीं लिख पाता है,
अँसुओं से भीगा अंतस तक,
मन कुछ भी कह नहीं पाता है ।
अब गौण बनी सब खुशियाँ हैं,
फूल लगें सब शूल से हैं,
गगन-धरा का मिलन कभी,
किसी को नहीं सुहाता है ।
प्रारब्ध से मैं तो हार गई,
मन ही में मन की बात रही,
पर जब तुम सामने होते हो,
मुँह जाने क्यों सिल जाता है ।
चिर उनींदी तरसें अँखियाँ,
सपने भी कैसे लूँ तेरे,
आभास हवा में हो तेरा,
मन भाव-शून्य हो जाता है ।
पलकों पर बोझ सहूँ कितना,
तुम आ कर मुझे बता जाते,
हर श्वास में तेरी गन्ध छिपी,
दिल तुम बिन डूबा जाता है ।
2 Comments:
बहुत सुन्दर भाव हैं।
चिर उनींदी तरसें अँखियाँ,
सपने भी कैसे लूँ तेरे,
आभास हवा में हो तेरा,
मन भाव-शून्य हो जाता है ।
Behatreen Geet.
Khaskar antim antara bahut hee pasand aaya.
Aapse lambee apeksha hai.
-Udayesh Ravi/Delhi
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