"तेरी स्मृतियों का लोक मिला !"
ये कैसे स्वप्न दिये मुझको,
तेरी स्मृतियों का लोक मिला !
धुँध से फैले हैं गीत मधुर,
सूने उर के इस प्राँगण में,
चपला-चँचल से मीत मेरे,
अठखेली करे मन-आँगन में,
खुशियाँ पाने के लालच में,
तुझको खोने का शोक मिला !
शोभित होते हैं तारों से,
सीपी-मुख जड़े धवल मोती,
चँदा है चुराता तेरी छवि,
तू अल्हड़ सी जब है सोती,
बिन बाती दीया जलता है,
ऐसा तेरा आलोक मिला !
3 Comments:
बहुत ही बेहतरीन रचना लिखी गयी है ...
चड्डा जी बहुत अच्छी लगी पढ़कर
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
पसंद पर क्लिक कर दिया है
आपकी कवितायेँ बहुत अच्छी.. लगी..दिल को प्रभावित करती है..लिखते रहिये..इंतजार रहेगा धन्यवाद...
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